इस्लामिक नववर्ष के आगमन के साथ ही दुनिया भर के मुसलमानों ने इसे धूमधाम से मनाना शुरू कर दिया है। हिजरी कैलेंडर के अनुसार, यह नया साल मुहर्रम महीने की शुरुआत से होता है, जो इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है। इस्लामिक नववर्ष के मौके पर विभिन्न देशों में विशेष प्रार्थनाएं और धार्मिक आयोजन किए जा रहे हैं, जिसमें लोग मस्जिदों में जाकर अल्लाह से दुआएं मांग रहे हैं और विशेष नमाज अदा कर रहे हैं।
सऊदी अरब में मुहर्रम 1446 की शुरुआत शनिवार, 6 जुलाई 2024 को मगरीब या शाम की नमाज के बाद मनाई जा रही है। वहीं, भारत में इस्लामिक नववर्ष 1446 की शुरुआत रविवार, 7 जुलाई 2024 की शाम से होगी। यह अंतर समय क्षेत्रों और चांद के दिखने के आधार पर है। सऊदी अरब में मुहर्रम का पहला दिन 7 जुलाई 2024 को होगा, जबकि भारत में इसे शाम की नमाज के बाद मनाया जाएगा। दोनों देशों में मुसलमान इस अवसर पर विशेष नमाज और दुआएं करेंगे।
इस अवसर पर कई मुस्लिम बहुल देशों में सरकारी छुट्टियां घोषित की गई हैं, जिससे लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ यह त्योहार मना सकें। विशेष रूप से सऊदी अरब, इराक, ईरान और पाकिस्तान जैसे देशों में इस्लामिक नववर्ष को लेकर खास तैयारियां की गई हैं। मस्जिदों और घरों को सजाया गया है और विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है। लोग एक-दूसरे को नववर्ष की मुबारकबाद दे रहे हैं और अपनी खुशियों का इज़हार कर रहे हैं।
इस्लामिक नववर्ष का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक भी है। इस महीने में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद किया जाता है, जो इस्लामी इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। मुहर्रम के पहले दस दिन विशेष महत्व रखते हैं और इन दिनों में मुसलमान इमाम हुसैन की याद में मातम मनाते हैं। खासकर, शिया मुस्लिम समुदाय में इस अवसर पर विशेष जुलूस और मजलिसें आयोजित की जाती हैं।
इंडोनेशिया, मलेशिया और तुर्की जैसे देशों में भी इस्लामिक नववर्ष को धूमधाम से मनाया जा रहा है। इन देशों में मस्जिदों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं और लोग धार्मिक सभाओं में शामिल हो रहे हैं। इसके साथ ही, इस्लामिक नववर्ष के मौके पर गरीबों और जरूरतमंदों को दान देने की परंपरा भी निभाई जाती है। इस्लामिक समाज में यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक पहल है, जिससे समाज के कमजोर वर्ग को सहायता मिलती है।
इस्लामिक नववर्ष का स्वागत दुनिया के हर कोने में मुसलमानों द्वारा उत्साह और उमंग के साथ किया जा रहा है। इस मौके पर लोग नई उम्मीदों और दुआओं के साथ अपने जीवन की नई शुरुआत करते हैं। यह त्योहार इस्लामिक संस्कृति और परंपराओं को और मजबूत बनाता है, साथ ही साथ आपसी भाईचारे और एकता का संदेश भी देता है। हर साल की तरह, इस बार भी इस्लामिक नववर्ष ने मुसलमानों के दिलों में नई ऊर्जा और उमंग भर दी है।
गणना के अनुसार, इस्लामिक कैलेंडर में लगभग 354 दिन होते हैं जो 12 महीनों में विभाजित होते हैं। मुहर्रम, सफर, रबी-अल-अव्वल, रबी-अल-थानी, जुमादा अल-अव्वल, जुमादा अल-थानी, रजब, शाबान, रमजान, शव्वाल, ज़िल-क़ादा, और ज़िल-हिज्जा। इस्लामिक नववर्ष का आरंभ मुहर्रम के महीने से होता है और यह महीना धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
मुहर्रम का महीना इस्लामिक इतिहास में विशेष स्थान रखता है। यह वही महीना है जब पैगंबर मोहम्मद मक्का से मदीना की ओर हिजरत (प्रवासन) किए थे। इसी महीने की दसवीं तारीख को यौम-ए-आशुरा कहा जाता है, जो इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है। यह दिन मुसलमानों के लिए मातम और दुःख का दिन होता है, विशेष रूप से शिया समुदाय के लिए।
इस्लामिक नववर्ष को अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। मिस्र, सीरिया, लेबनान, और अन्य मध्य पूर्वी देशों में भी इस्लामिक नववर्ष को धूमधाम से मनाया जाता है। इन देशों में लोग विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, जिसमें धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का समावेश होता है।
इस्लामिक नववर्ष के आगमन के साथ, कई लोग नए संकल्प लेते हैं और अपने जीवन को और अधिक धार्मिक और नैतिक बनाने का प्रयास करते हैं। यह अवसर लोगों को आत्मविश्लेषण करने और अपने जीवन में सुधार लाने के लिए प्रेरित करता है। इस तरह, इस्लामिक नववर्ष न केवल एक धार्मिक त्योहार है, बल्कि यह आत्म-सुधार और नैतिक विकास का भी प्रतीक है।
इस्लामिक नववर्ष के मौके पर विशेष रूप से बच्चों और युवाओं के लिए धार्मिक और शैक्षिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें उन्हें इस्लामिक इतिहास और परंपराओं के बारे में जानकारी दी जाती है। इससे नई पीढ़ी को अपने धर्म और संस्कृति के प्रति जागरूकता बढ़ाने का अवसर मिलता है।
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