Acharya Devvrat

Restoring the fertility of cultivable land from barren land through natural farming

रासायनिक खेती से बंजर भूमि की उर्वरा शक्ति लौटाएगी सिर्फ प्राकृतिक खेती: आचार्य देवव्रत!

चंडीगढ़ 6 अगस्त 2024: आचार्य देवव्रत ने प्राकृतिक खेती के माध्यम से बंजर हो चुकी कृषि योग्य जमीन की उर्वरा शक्ति को पुनः स्थापित करने की ओर ध्यान आकर्षित किया है। उन्होंने चंडीगढ़ प्रेस क्लब में आयोजित मीट द प्रेस कार्यक्रम में बताया कि देश की कृषि भूमि अत्यधिक डीएपी, यूरिया, और कीटनाशकों के प्रयोग के कारण बंजर हो चुकी है। उनका मानना है कि इस पवित्र धरती की उर्वरा शक्ति को केवल प्राकृतिक खेती ही वापस लौटा सकती है। आचार्य देवव्रत ने गुजरात के राज्यपाल के रूप में अपने अनुभवों को साझा करते हुए प्राकृतिक खेती की क्रांतिकारी विशेषताओं पर जोर दिया।

आचार्य देवव्रत ने प्राकृतिक खेती की दिशा में अपना सफर साझा किया, जिसमें उन्होंने रासायनिक और ऑर्गैनिक खेती की सीमाओं को स्वीकार किया। रासायनिक खादों के जहरीले प्रभाव से चिंतित होकर उन्होंने जंगलों से प्रेरित होकर शून्य बजट खेती विकसित की। उन्होंने बताया कि इस विधि में बिना किसी खर्च के तैयार होने वाला जीवामृत उपयोगी है, जिसे गाय के मलमूत्र, दालों, गुड़ और केंचुओं से तैयार किया जाता है। पिछले आठ वर्षों से कुरुक्षेत्र में 180 एकड़ खेत पर इसका सफल प्रयोग किया गया है।

आचार्य देवव्रत ने प्राकृतिक खेती की क्रांतिकारी विशेषताओं को उजागर करते हुए दावा किया कि इस पद्धति को अपनाने से न केवल देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी, बल्कि किसानों की आर्थिक दशा में भी उल्लेखनीय सुधार होगा। उन्होंने गुजरात में राज्यपाल बनने के बाद भी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में काम किया है, और वहां 752,000 एकड़ में यह विधि अपनाई जा चुकी है। गुजरात में अब नौ लाख किसानों ने प्राकृतिक खेती की पद्धति को अपनाया है।

उन्होंने जल-स्तर के गिरते स्तर की ओर भी ध्यान आकर्षित किया और चेतावनी दी कि यदि समय रहते रासायनिक खेती को छोड़कर प्राकृतिक खेती को अपनाया नहीं गया, तो भविष्य में पीने के पानी की भी किल्लत हो सकती है। आचार्य देवव्रत ने बताया कि कीटनाशकों के दुरुपयोग के कारण दशकों से मिट्टी की उर्वरता पर प्रभाव पड़ा है, और वर्तमान में मिट्टी में कार्बनिक कार्बन की मात्रा बहुत कम हो गई है। शून्य बजट खेती के माध्यम से इस समस्या का समाधान संभव है।

आचार्य देवव्रत ने प्राकृतिक खेती पर एक पाठ्यक्रम तैयार करने की भी जानकारी दी, जिसे देश के कृषि विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाएगा। इससे भावी पीढ़ी इस विधि को समझ सकेगी और इसके प्रचार-प्रसार में मदद करेगी। उन्होंने अपने कार्यकाल में राजभवनों में हर साल 26 जनवरी और 15 अगस्त को होने वाली ऐट होम को सामान्य चाय पार्टी से उपयोगी चर्चा-परिचर्चाओं में बदलने की पहल की। आचार्य देवव्रत नशा मुक्ति और स्वच्छता अभियानों में भी सक्रिय रहे हैं और इन क्षेत्रों में भी उल्लेखनीय योगदान किया है।