संसद में राहुल गांधी ने अपने संबोधन के दौरान हिंदुत्व पर एक महत्वपूर्ण बयान दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), नरेंद्र मोदी, या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की संपत्ति नहीं है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हिंदू धर्म एक विशाल और प्राचीन परंपरा है, जो किसी एक राजनीतिक दल या व्यक्ति तक सीमित नहीं है।
राहुल गांधी ने अपने भाषण में कहा कि भाजपा और आरएसएस ने हिंदू धर्म को अपने राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग किया है, लेकिन वे इसके असली मर्म को नहीं समझते। उन्होंने बताया कि हिंदू धर्म की शिक्षा और उसकी विचारधारा सभी के लिए समान और व्यापक हैं। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि धर्म का उपयोग राजनीतिक एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू धर्म के मूल्य और सिद्धांत सभी के लिए हैं और इसे किसी भी राजनीतिक दल या संगठन के स्वामित्व के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। राहुल गांधी ने हिंदू धर्म की सहिष्णुता, विविधता और सबके प्रति समानता के मूल्यों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि ये मूल्य भारत के संविधान और समाज की नींव हैं।
राहुल गांधी ने इस बात पर भी जोर दिया कि भाजपा और आरएसएस ने धर्म का राजनीतिकरण करके समाज में विभाजन पैदा किया है। उन्होंने कहा कि हमें धर्म को राजनीति से अलग रखना चाहिए और इसे लोगों के जीवन और समाज को जोड़ने के एक साधन के रूप में देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि धर्म का सही मायने में सम्मान तब होता है जब हम इसे लोगों के कल्याण और सामाजिक न्याय के लिए उपयोग करते हैं।
अंत में, राहुल गांधी ने अपने भाषण में सभी सांसदों से अपील की कि वे धर्म को राजनीति के उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने से बचें और इसके बजाय इसके मूल्यों को समझें और उनका सम्मान करें। उन्होंने कहा कि भारत की ताकत उसकी विविधता और सहिष्णुता में है और हमें इसे बनाए रखने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।
राहुल गांधी ने बोलते हुए कहा कि भगवान शिव ने कहा था, “डरो मत, डराओ मत।” राहुल गांधी ने कहा कि सभी महापुरुषों ने यही बात कही है, लेकिन “ये लोग सुबह से शाम तक हिंसा, हिंसा, हिंसा करते हैं और डर का माहौल फैलाते हैं।” राहुल गांधी ने यह भी कहा कि जो लोग ऐसे काम करते हैं, वे असली हिंदू हो ही नहीं सकते।
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