डॉ.(प्रोफ़ेसर) कमलेश संजीदा गाज़ियाबाद , उत्तर प्रदेश

डॉ.(प्रोफ़ेसर) कमलेश संजीदा गाज़ियाबाद , उत्तर प्रदेश

वर्तमान में शिक्षक की दशा और दुर्दशा: हम सब की जिम्मेदारी!

शिक्षक समाज के लिए एक महत्वपूर्ण स्तंभ होते हैं, जो ज्ञान और नैतिक मूल्यों की नींव रखते हैं। भारत में शिक्षक एक समय समाज के आदर्श और मार्गदर्शक माने जाते थे। भारतीय समाज में शिक्षक का सम्मान और आदर सदियों से रहा है, लेकिन वर्तमान समय में उनकी स्थिति काफी दयनीय हो गई है। शिक्षक की दशा और दुर्दशा को सुधारने के लिए सिर्फ सरकारी नीतियाँ ही जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि समाज और हम सभी भी इसमें भूमिका निभाते हैं। इस लेख में हम वर्तमान परिदृश्य, हालिया उदाहरण, और केस स्टडी के माध्यम से समझेंगे कि इस स्थिति के लिए कौन-कौन जिम्मेदार हैं और इसके सुधार के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं।लेकिन आज के दौर में शिक्षकों की स्थिति चिंताजनक हो गई है। वेतन में कमी, अत्यधिक कार्यभार, और समाजिक सम्मान की कमी जैसी समस्याएँ उनके पेशे को प्रभावित कर रही हैं। जो कार्य शिक्षकों के नहीं होते , उन्हें भी करने पड़ते हैं। इस स्थिति के लिए केवल सरकारी नीतियाँ और शिक्षा प्रणाली जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि हम समाज के लोग भी इसके लिए उत्तरदायी हैं। इस लेख में हम वर्तमान परिदृश्य, उदाहरण, और केस स्टडी के माध्यम से समझेंगे कि शिक्षक की दशा और दुर्दशा के लिए कौन-कौन जिम्मेदार हैं और इस समस्या का समाधान कैसे किया जा सकता है।

शिक्षकों की वेतन स्थिति एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। वेतन स्थितियां अलग अलग राज्यों में अलग हैं उदाहरण के तौर पर, हाल ही में एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि सरकारी स्कूलों में कार्यरत शिक्षक की औसत मासिक आय कई राज्यों में न्यूनतम वेतन के करीब है। इसके अतिरिक्त, महंगाई की दर बढ़ने के कारण उनकी वास्तविक आय में कमी आई है। हाल के एक केस स्टडी में, राजस्थान के एक शिक्षक ने बताया कि वेतन में कमी और महंगाई के चलते उन्हें अपनी मूलभूत आवश्यकताएँ पूरी करने में कठिनाई हो रही है।आज के समय में सरकारी और निजी दोनों ही स्कूलों में शिक्षकों की वेतन स्थिति चिंता का विषय है। अगर हम निजी स्कूलों की बात करें तो वहां पर वेतन का कोई मानदंड ही नहीं किसी किसी स्कुल में तो वेतन कम दिया जाता है हस्ताक्षर ज्यादा पर कराया जाता है उदाहरण के लिए, भारत के कई राज्यों में सरकारी स्कूलों के शिक्षकों का वेतन न्यूनतम वेतन के बराबर है, जो उनके जीवनयापन के लिए अपर्याप्त है। महंगाई के कारण, इस वेतन की वास्तविक शक्ति और भी कम हो जाती है, जिससे शिक्षकों की आर्थिक स्थिति कमजोर हो जाती है।

शिक्षकों के लिए ठेकेदारी प्रथा का उदय इस २१ वींशताब्दी में हो गया है जिसको फक्र के साथ बताया जा रहा है। शिक्षकों को ठेकेदार के माध्यम से स्कूलों, कालेजों में भी काम कराया जा रहा हैजहाँ पर ठेकेदार अपनी मर्जी से काम कराते हैं और अपने हिसाब से वेतन देते हैं तथा तरह-तरह से शिक्षकों एवं शिक्षिकाओं को प्रताड़ित भी करते हैं उनका आर्थिक शोषण , सामाजिक शोषण, धार्मिक शोषण, मानसिक शोषण, कहीं-कहीं पर तो चारित्रिक शोषण एवं योंन शोषण भी किया जाता है इन बातों को कोई भी शिक्षक किसी को बताने से भी डरते हैं अक्सर शिक्षक इन सब बातों को वो दिल में दबा कर रह जाते हैं। इन सब बातों को लिखने के लिए मेरी आत्मा भी बहुत दुखी हो रही है अगर किसी को बुरा लग रहा हो तो मैं यहाँ क्षमा प्रार्थी हूँ पर ऐसा हो रहा आपके आस पास ही जिनका कोई विरोध नहीं करता, अगर विरोध करता है तो उसका परिणाम शिक्षकों को भयंकर रूप से सहन करना पड़ता है।  यह  शोषण स्कूलों एवं कालेजों के प्रबंधको के  द्वारा किया जा रहा है।

शिक्षकों पर केवल पढ़ाने का ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक कामों का भी भारी बोझ होता है। उदाहरण के लिए, हाल ही में उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में एक अध्ययन से पता चला है कि शिक्षकों को रोजाना कक्षा लेने के अलावा दर्जनों रिपोर्ट तैयार करनी पड़ती हैं और विभिन्न फॉर्म भरने पड़ते हैं। इस अतिरिक्त बोझ के कारण, वे अपनी पढ़ाई के समय में कटौती करने को मजबूर हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पड़ता है।शिक्षकों को न केवल पढ़ाने का कार्य सौंपा जाता है, बल्कि उन्हें प्रशासनिक कामों और अतिरिक्त जिम्मेदारियों का भी सामना करना पड़ता है। एक केस स्टडी के अनुसार, उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों को रोजाना कक्षाओं के अलावा विभिन्न रिपोर्ट तैयार करनी पड़ती है, जिससे उनकी पढ़ाई के समय में कमी आती है। इस अतिरिक्त बोझ के कारण, वे शैक्षणिक गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं।

सामाजिक सम्मान की कमी भी एक गंभीर समस्या है। शिक्षकों की मेहनत की अक्सर अनदेखी की जाती है। हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 70% शिक्षक मानते हैं कि उन्हें समाज से अपेक्षित सम्मान नहीं मिलता। उदाहरण के लिए, कई जगहों पर शिक्षक दिवस को एक औपचारिकता के रूप में मनाया जाता है, जबकि इसे शिक्षकों के योगदान की सराहना के अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए।सामाजिक सम्मान की कमी भी एक महत्वपूर्ण समस्या है। शिक्षकों को उनके योगदान का सही मूल्यांकन नहीं मिलता, और उनकी मेहनत की अक्सर अनदेखी की जाती है। एक हालिया सर्वेक्षण में पाया गया कि अधिकांश शिक्षक अपनी पेशेवर स्थिति से असंतुष्ट हैं क्योंकि उन्हें समाज से अपेक्षित सम्मान और मान्यता नहीं मिलती।

शिक्षक दिवस पर शिक्षक सम्मान के गलत मानदंड एक गंभीर समस्या हो सकती है। अक्सर, सम्मान और पुरस्कार के निर्णय में कई बार वास्तविक योग्यता की बजाय सामाजिक या व्यक्तिगत मानदंडों को प्राथमिकता दी जाती है। ऐसे में, गुणात्मक पहलुओं की अनदेखी की जाती है और शिक्षक की वास्तविक क्षमता और प्रयासों को नजरअंदाज किया जाता है।कुछ मानदंड जैसे कि बाहरी दिखावा, तात्कालिक लोकप्रियता, या किसी विशेष संस्थान से जुड़े होने पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया जाता है। यह देखा गया है कि कई बार, सम्मान देने वाले व्यक्ति या संस्था द्वारा व्यक्तिगत पसंद-नापसंद भी निर्णय को प्रभावित करती है।इसके अलावा, शिक्षकों की वास्तविक शिक्षण क्षमताओं की बजाय उनकी प्रशासनिक या अन्य बाहरी गतिविधियों को ज्यादा महत्व दिया जाता है। इस तरह के मानदंड से शिक्षकों के वास्तविक योगदान और कड़ी मेहनत को नजरअंदाज किया जाता है, जिससे उन्हें उचित मान्यता और प्रेरणा नहीं मिल पाती।सही मानदंड वह होंगे जो शिक्षकों की वास्तविक शैक्षिक गुणवत्ता, विद्यार्थियों के प्रति उनकी समर्पण भावना और समाज में उनके प्रभाव को ध्यान में रखेंगे।

शिक्षकों की दशा को सुधारने के लिए समाज, सरकार और व्यक्तिगत स्तर पर हम सभी की जिम्मेदारी है। इसे समझने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है:-शिक्षकों की वर्तमान स्थिति के लिए हम सभी जिम्मेदार हैं। इसमें समाज, सरकार, और व्यक्तिगत स्तर पर हमारी भूमिका होती है। इसे अधिक स्पष्टता से समझने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है:-

समाज में शिक्षकों के प्रति सम्मान और मान्यता की कमी उनकी स्थिति को और खराब करती है। समाज को शिक्षकों के महत्व को समझना चाहिए और उनकी मेहनत की सराहना करनी चाहिए। हाल ही में,”टीच फॉर इन्डिया (Teach for India)” जैसे संगठन समाज में शिक्षकों के योगदान को उजागर करने के लिए विशेष कार्यक्रम और जागरूकता अभियान चला रहे हैं, जो एक सकारात्मक बदलाव की दिशा में कदम है।समाज में शिक्षकों के प्रति सम्मान की कमी उनके पेशे को प्रभावित करती है। जब समाज शिक्षकों के योगदान को समझेगा और उनकी मेहनत को सराहेगा, तब उनकी दशा में सुधार होगा। उदाहरण के तौर पर, कुछ प्रगतिशील समाजों में शिक्षक दिवस को बड़े सम्मान के साथ मनाया जाता है, जिससे शिक्षकों को प्रेरणा मिलती है।

सरकारी नीतियाँ और प्रशासनिक सुधार भी शिक्षकों की दशा को प्रभावित करती हैं। वेतन में सुधार, संसाधनों की उपलब्धता, और प्रशिक्षण में वृद्धि की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश सरकार ने हाल ही में शिक्षकों के लिए वेतन वृद्धि की योजना घोषित की है और इसके साथ ही, नवीनतम शिक्षण विधियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए हैं। इसी तरह के सुधार अन्य राज्यों में भी लागू किए जाने चाहिए।सरकारी नीतियाँ भी शिक्षकों की दशा को प्रभावित करती हैं। वेतन, संसाधन, और प्रशिक्षण में सुधार की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु सरकार ने हाल ही में शिक्षकों के वेतन में वृद्धि की घोषणा की है और शिक्षा में संसाधनों के लिए विशेष बजट आवंटित किया है। इसी तरह के कदम पूरे देश में उठाए जाने चाहिए।

हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह शिक्षकों की स्थिति को सुधारने के लिए प्रयास करे। हमें शिक्षा के महत्व को समझना चाहिए और शिक्षकों की भूमिका को सराहना चाहिए। एक व्यक्तिगत उदाहरण के तौर पर, कई समुदायों में माता-पिता स्वयं शिक्षकों की मदद करने के लिए समय निकालते हैं और स्कूलों के विकास में योगदान देते हैं, जो कि एक सकारात्मक कदम है।समाज में शिक्षकों के प्रति जागरूकता और मान्यता बढ़ाने की दिशा में काम करना चाहिए। व्यक्तिगत तौर पर, हमें शिक्षा के महत्व को समझना और शिक्षकों के योगदान को सराहना चाहिए।

शिक्षकों के वेतन और लाभ में सुधार के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। उदाहरण के तौर पर, हरियाणा सरकार ने हाल ही में शिक्षक वेतन में 20% की वृद्धि की है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। इसी प्रकार के कदम पूरे देश में लागू किए जाने चाहिए ताकि शिक्षक अपनी जिंदगी की बुनियादी जरूरतों को पूरी तरह से पूरा कर सकें।सरकार को शिक्षकों के वेतन की समीक्षा करनी चाहिए और उसे उचित मानक के अनुसार समायोजित करना चाहिए। हाल ही में, महाराष्ट्र में शिक्षकों के लिए पेंशन योजनाओं को सुधारने की दिशा में पहल की गई है, जिसे अन्य राज्यों में भी अपनाना चाहिए।

शिक्षकों को नियमित और अद्यतन प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। हाल ही में, दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में “डिजिटल लर्निंग” पर एक कार्यशाला आयोजित की गई, जिसने शिक्षकों को आधुनिक तकनीकों से परिचित कराया और उनकी शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में मदद की। इसी प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रमों को अन्य क्षेत्रों में भी लागू किया जाना चाहिए।शिक्षकों को नियमित रूप से प्रशिक्षण और संसाधन प्रदान किए जाने चाहिए। इससे उनकी कार्यक्षमता में सुधार होगा और वे शिक्षा की गुणवत्ता में योगदान दे सकेंगे। उदाहरण के लिए, दिल्ली में सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को डिजीटल प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे उनकी शैक्षणिक क्षमता में सुधार हुआ है।

शिक्षकों को प्रशासनिक कार्यों से मुक्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में हाल ही में एक पहल के तहत शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों से छूट देने का निर्णय लिया गया है, जिससे वे अपनी शैक्षणिक जिम्मेदारियों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकें।शिक्षकों को प्रशासनिक कार्यों से मुक्त करने के लिए योजनाएँ बनानी चाहिए। उन्हें केवल शैक्षणिक कार्य पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलना चाहिए। उदाहरण के लिए, कर्नाटका सरकार ने शिक्षकों को प्रशासनिक जिम्मेदारियों से मुक्त करने के लिए विशेष निर्देश जारी किए हैं।

समाज में शिक्षकों के प्रति जागरूकता और मान्यता बढ़ाने के लिए सरकार एवं स्कूल-कालेजों के प्रबंधको को पहल करनी चाहिए। मीडिया और समाजिक संगठनों को इस दिशा में काम करना चाहिए और शिक्षकों के योगदान को समाज में उजागर करनाचाहिए।जसमें स्कूल-कालेज में विभाग स्तर पर,पूरे स्कूल-कालेज पर, “राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार (National Teacher Awards)”एवं “केन्द्रीय शिक्षक पुरस्कार (Central Teachers Award)”जैसे पुरस्कार और सम्मान समारोह शिक्षकों की सराहना के कुछ महत्वपूर्ण तरीका हो सकते हैं।समाज में शिक्षकों के प्रति जागरूकता और मान्यता बढ़ाने के लिए विभिन्न पहल की जानी चाहिए। मीडिया, समाजिक संगठन, और शिक्षा संस्थानों को इस दिशा में काम करना चाहिए। शिक्षकों की भूमिका और योगदान को समाज में उजागर करने के लिए विशेष अभियान चलाए जाने चाहिए।

भारत के विभिन्न राज्यों में शिक्षकों की स्थिति चिंता का विषय बन गई है। शिक्षक, जो समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, आजकल कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। विभिन्न राज्यों में शिक्षकों को कम वेतन, अत्यधिक कार्यभार, और सामाजिक सम्मान की कमी जैसी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश में शिक्षकों को न्यूनतम वेतन और प्रशासनिक कार्यों की अधिकता का सामना करना पड़ता है, जबकि बिहार में वेतनमान बहुत कम है और स्थायी नियुक्तियों की कमी है। मध्य प्रदेश में शिक्षकों पर राजनीतिक दबाव और अतिरिक्त प्रशासनिक कार्यों का बोझ है। महाराष्ट्र में स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन कार्यभार और तनाव की समस्याएं अभी भी बनी हुई हैं। तमिलनाडु में वेतन में वृद्धि के बावजूद, शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण की कमी है। इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए सरकार, प्रबंधकों  और समाज को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है, ताकि शिक्षकों को उनकी भूमिका के लिए उचित मान्यता और समर्थन मिल सके। शिक्षक समाज के निर्माण और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनकी दशा और दुर्दशा को सुधारने के लिए समाज, सरकार, और व्यक्तिगत स्तर पर सभी को मिलकर प्रयास करना होगा। हमें शिक्षकों की स्थिति की गंभीरता को समझना होगा और उनके योगदान की सराहना करनी होगी। शिक्षक केवल ज्ञान प्रदान करने वाले नहीं होते, बल्कि वे समाज एवं देश के भविष्य को आकार देने वाले होते हैं। उनकी स्थिति में सुधार केवल उनके लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज एवं देश के विकास के लिए भी आवश्यक है। शिक्षकों की दशा को सुधारने के लिए समग्र दृष्टिकोण और प्रयास की आवश्यकता है, ताकि हम एक सशक्त और विकसित समाज से विकशित देश की दिशा में आगे बढ़ सकें।Top of Form

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हमें शिक्षकों की स्थिति की गंभीरता को समझना होगा और उनके योगदान की सराहना करनी होगी।

डॉ.(प्रोफ़ेसर) कमलेश संजीदा गाज़ियाबाद  , उत्तर प्रदेश