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आपने जमूरा पत्रकार देखा क्या? प्रेस कॉन्फ्रेंस और पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर सवाल!

आपने जमूरा पत्रकार देखा क्या? प्रेस कॉन्फ्रेंस और पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर सवाल!

आज मेरे साथ एक अनोखी घटना घटी, जिसे मैं आप सबके साथ साझा करना चाहता हूं। चंडीगढ़ के सेक्टर 26 में आयोजित SJOBA Rally 2024 की प्रेस कॉन्फ्रेंस थी, जिसका निमंत्रण मुझे मेरे साथी पत्रकार की तरफ से मिला। मुझे इस तरह के कार्यक्रमों को समझने में हमेशा उत्सुकता रहती है, इसलिए मैंने सोचा कि इसे अपने न्यूज़ पोर्टल के लिए कवर करूं। प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत सामान्य रूप से हुई, लेकिन जब सवाल-जवाब का दौर आया, तो मैंने भी कुछ सवाल पूछे। मेरे सवाल बिल्कुल सरल थे, जैसे इस कार्यक्रम की शुरुआत कब से हुई और इसमें भाग लेने के लिए क्या प्रक्रिया है। इन सवालों के जवाब भी पैनल ने ठीक से दिए।

इसके बाद मेरी मुलाकात उस कार्यक्रम के पीआर ठेकेदार, श्रीमान खर्बंदा से हुई, जिनसे मैं पहले भी कई कार्यक्रमों में मिल चुका था। परंतु इस बार उनकी प्रतिक्रिया ने मुझे चौंका दिया। उन्होंने मुझ पर नाराजगी जताते हुए कहा कि मैंने सवाल क्यों पूछे, जबकि उन्होंने पहले से ही पैनल के सदस्यों को सभी सवालों और उनके जवाब रटा दिए थे। उनका गुस्सा यह दर्शा रहा था कि मैं उनके पहले से तय किए गए एजेंडे से बाहर चला गया था। उन्होंने मुझसे कहा कि अगर भविष्य में मुझे कार्यक्रम में आना है, तो सिर्फ चुपचाप बैठना होगा और सवाल पूछने का कोई अधिकार नहीं है।

यह घटना मुझे सोचने पर मजबूर कर गई कि क्या अब प्रेस कॉन्फ्रेंस और न्यूज़ कवरेज का पूरा नियंत्रण ठेकेदारों के हाथों में है? क्या पत्रकारिता की स्वतंत्रता सिर्फ नाम मात्र की रह गई है? मैंने जो सवाल पूछे, वे सामान्य और सटीक थे, जिनका जनता के हित से सीधा संबंध था, फिर भी मुझे ऐसा महसूस कराया गया जैसे मैंने कोई गलती की हो। पत्रकारों का काम सच्चाई को उजागर करना होता है, न कि किसी ठेकेदार के एजेंडे के हिसाब से काम करना।

बड़े चैनलों में पहले से सुनने में आता था कि उनके लिए एक तय एजेंडा होता है, जहां कौन क्या बोलेगा, कौन किसकी बेइज्जती करेगा, यह सब पहले से तय किया जाता है। परंतु मुझे यह नहीं पता था कि इस तरह की घटनाएं चंडीगढ़ जैसे शहरों में भी होने लगी हैं। यहाँ तक कि छोटे और स्वतंत्र पत्रकारों पर भी इसी तरह का दबाव बनाया जाने लगा है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो पत्रकारिता का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है, क्योंकि इसके मूल में स्वतंत्रता और निष्पक्षता है।

अंततः, मुझे यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि क्या हमें अब इन ठेकेदारों के निर्देशों के अनुसार काम करना पड़ेगा? क्या हमारे पास अब भी सवाल पूछने और सच्चाई तक पहुँचने की स्वतंत्रता है? या फिर हमें सिर्फ एक दर्शक बनकर, समय बर्बाद कर, कार्यक्रम में उपस्थित रहना होगा, बिना कुछ कहे, सिर्फ वही करते हुए जो ठेकेदार चाहते हैं? मेरे इस अनुभव को साझा करने का उद्देश्य यह है कि आप सब भी इस पर विचार करें कि पत्रकारिता का भविष्य क्या होगा और क्या हम इसे बचा सकते हैं।